टीबी रोग के सरल घरेलु आयुर्वेदिक उपचार।
टी. बी. टी बी TB T.B. (Tuberculosis) तपेदिक क्षय रोग, यक्ष्मा
T.B. संक्रामक रोग होता है| तपेदिक के मूल लक्षणों में खाँसी का तीन हफ़्तों से ज़्यादा रहना, थूक का रंग बदल जाना या उसमें रक्त की आभा नजर आना, बुखार, थकान, सीने में दर्द, भूख कम लगना, साँस लेते वक्त या खाँसते वक्त दर्द का अनुभव होना आदि।
टीबी कोई आनुवांशिक (hereditary) रोग नहीं है। यह किसी को भी हो सकता है। जब कोई स्वस्थ व्यक्ति तपेदिक रोगी के पास जाता है और उसके खाँसने, छींकने से जो जीवाणु हवा में फैल जाते हैं उसको स्वस्थ व्यक्ति साँस के द्वारा ग्रहण कर लेता है।
टीबी कोई आनुवांशिक (hereditary) रोग नहीं है। यह किसी को भी हो सकता है। जब कोई स्वस्थ व्यक्ति तपेदिक रोगी के पास जाता है और उसके खाँसने, छींकने से जो जीवाणु हवा में फैल जाते हैं उसको स्वस्थ व्यक्ति साँस के द्वारा ग्रहण कर लेता है।
इसके अलावा जो लोग अत्यधिक मात्रा में ध्रूमपान या शराब का सेवन करते हैं, उनमें इस रोग के होने की संभावना ज़्यादा होती है। इस रोग से बचने के लिए साफ-सफाई रखना और हाइजिन का ख्याल रखना बहुत ज़रूरी होता है।
अगर किसी को ये रोग हो गया हैं तो वह तुरन्त जाँच केंद्र में जाकर अपने थूक की जाँच करवायें और डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा प्रमाणित डॉट्स (DOTS- Directly Observed Treatment) के अंतगर्त अपना उपचार करवाकर पूरी तरह से ठीक होने की पहल करें।
लेकिन एक बात का ध्यान रखने की ज़रूरत यह है कि टी.बी. का उपचार आधा करके नहीं छोड़ना चाहिए।
लक्षणों की बात करें तो थकावट इसका प्रमुख लक्षण है| खांसी बनी रहती है| बीमारी ज्यादा बढ़ जाने पर बलगन में खून के रेशे भी आते हैं| सांस लेने में दिक्कत आने लगती है| छोटी सांस इसका एक लक्षण है| बुखार बना रहता है या बार बार आता रहता है| वजन कम होंने लगता है| रात को अधिक पसीना आता है| छाती ,गुर्दे और पीठ में दर्द की अनुभूति होती है|
अब आपको बताते हैं इस रोग के आयुर्वेदिक सरल घरेलु उपचार।
1) शहद 200 ग्राम, मिश्री 200 ग्राम, गाय का घी 100 ग्राम, तीनो को मिला लें। 6-6 ग्राम दवा दिन में कई बार चटाऐं।ऊपर से गाय या बकरी का दूध पिलाऐं।तपेदिक रोग मात्र एक सप्ताह में ही जड़ से समाप्त हो जाएगा।
2) पीपल वृक्ष की राख 10 ग्राम से 20 ग्राम तक बकरी के गर्म दूध में मिला कर प्रतिदिन दोनो समय सेवन करने से यह रोग जड़ से समाप्त हो जाऐगा।इसमें आवश्यकतानुसार मिश्री या शहद मिला सकते हैं।
3) पत्थर के कोयले की राख (जो एकदम सफेद हो) आधा ग्राम, मक्खन मलाई अथवा दूध से प्रातः व सांय खिलाओं ये राम बाण है। टी.बी. के जिन मरीजों के फेफड़ों से खून आता हो उनके लिए यह औषधि अत्यंत प्रभावी है।
4) लहसुन का एलीसिन तत्व टीबी के जीवाणु की ग्रोथ को बाधित करता है| एक कप दूध में 4 कप पानी मिलाएं, इसमें 5 लहसुन की कली पीसकर डालें और उबालें, जब तरल चौथाई भाग शेष रहे तो आंच से उतार् लें, और ठंडा होने पर पी लें| ऐसा दिन में तीन बार करना है| दूसरा उपचार यह कि एक गिलास गरम दूध में लहसुन के रस की दस बूँदें डालें| रात को सोते वक्त पीएं|
6) रोज़ सुबह और शाम को जब पेट खाली हो, आधा कप प्याज का रस एक चुटकी हींग डाल कर पिए, एक सप्ताह में फर्क दिखेगा।
7) एक गिलास गाय के दूध में आधा चम्मच गाय का घी और एक चम्मच हल्दी डाल कर गर्म कीजिये और इसको सोने से पहले पिए। तपेदिक के रोगियों को दवा के साथ ये प्रयोग ज़रूर करना चाहिए। इस से उनको बहुत ही जल्दी फर्क मिलता हैं।
8) सोने के टुकडे / सिक्के को 100 बार गर्म कर के स्वदेशी गो के शुद्ध घी में बुझाने से एक अमोघ औषध बन जाति है. रोगी को यह घी प्रतिदिनथोड़ा-थोड़ा खिलाने से तपेदिक रोग ठीक हो जाता है.
9) मध्यप्रदेश में पैदा होने वाले रुदंती वृक्ष के फल से बने चूर्ण से कैसा भी असाध्य तपेदिक रोगी सरलता से ठीक हो जाता है. अलीगढ की धन्वन्तरी फार्मेसी रुदंती के कैप्सूल बनाती है. हज़ारों रोगी इनसे स्वस्थ हुए हैं.बलगमी दमा में भी ये कैप्सूल अछा काम करते हैं.
10) केला – पौषक तात्वि, से परिपूर्ण फल है| केला शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है, एक पका कला लें| मसलकर इसमें एक कप नारियल पानी , आधा कप दही और एक चम्मच शहद मिलाएं| दिन में दो बार लेना है|
11) सहजन की फली में जीवाणु नाशक और सूजन नाशक तत्व होते हैं| टीबी के जीवाणु से लड़ने में मदद करता है| मुट्ठी भर सहजन के पत्ते एक गिलास पानी में उबालें | नमक,काली मिर्च और निम्बू का रस मिलाएं| रोज सुबह खाली पेट सेवन करें| सहजन की फलियाँ उबालकर लेने से फेफड़े को जीवाणु मुक्त करने में सहायता मिलती है|
12) आंवला अपने सूजन विरोधी एवं जीवाणु नाशक गुणों के लिए प्रसिद्ध है| आंवला के पौषक तत्त्व शरीर की प्रक्रियाओं को सुचारू चलाने की ताकत देते है| चार या पांच आंवले के बीज रहित कर लें जूसर में जूस निकालें| यह जूस सुबह खाली पेट लेना टीबी रोगी के लिए अमृत तुल्य है\ कच्चा आंवला या चूर्ण भी लाभदायक है|
13) संतरा – फेफड़े पर संतरे का क्षारीय प्रभाव लाभकारी है| यह इम्यून सिस्टम को बल देने वाला है| कफ सारक है याने कफ को आसानी से बाहर निकालने में सहायता कारक है| एक गिलास संतरे के रस में चुटकी भर नमक ,एक बड़ा चम्मच शहद अच्छी तरह मिलाएं\ सुबह और शाम पीएं|
जिन लोगों में रोग अत्यधिक बढ़ चुका है वे ये औषधियाँ सेवन करे
1) आक की कली, प्रथम दिन एक निगल जाऐं, दूसरे दिन दो, फिर बाद के दिनों में तीन-तीन निगल कर 15 दिन इस्तेमाल करें। औषधि जितनी साधारण है उतने ही इसके लाभ अद्भुत हैं।
2) प्रथम दिन 10 ग्राम गो मूत्र पिलाऐं, तीन दिन पश्चात मात्रा 15 ग्राम कर दें, छह दिन पश्चात 20 ग्राम। इसी प्रकार 3-3 दिन पश्चात 5 ग्राम मात्रा प्रतिदिन पिलाऐं निरंतर गौ मूत्र पिलाने से तपेदिक रोग जड़ से समाप्त हो जाएगा। और फिर दोबारा जिन्दगी में नही होगा।
3) असगंध, पीपल छोटी, दोनो समान भाग लेकर औऱ अत्यन्त महीन पीसकर चूर्ण बना लें, इसमें बराबर वजन की खाँड मिलाकर औऱ घी से चिकना करके दुगना शहद मिला लें। इसमें से 3 से 6 ग्राम की मात्रा लेकर प्रातः व सांय सेवन करने से तपेदिक 7 दिन में जड़ से समाप्त हो जाता है।
तपेदिक के योग –
1) आक का दूध 1 तोला (10 ग्राम ), हल्दी बढ़िया 15 तोले(150 ग्राम ) – दोनों को एक साथ खूब खरल करें । खरल करते करते बारीक चूर्ण बन जायेगा । मात्रा – दो रत्ती से चार रत्ती (1/4 ग्राम से 1/2 ग्राम तक )तक मधु (शहद) के साथ दिन में तीन-चार बार रोगी को देवें । तपेदिक के साथी ज्वर खांसी, फेफड़ों से कफ में रक्त (खून) आदि आना सब एक दो मास के सेवन से नष्ट हो जाते हैं और रोगी भला चंगा हो जायेगा । इस औषध से वे निराश हताश रोगी भी अच्छे स्वस्थ हो जाते हैं जिन्हें डाक्टर अस्पताल से असाध्य कहकर निकाल देते हैं ।
2) आक का दूध 50 ग्राम, कलमी शोरा और नौसादर, प्रत्येक 10-10 ग्राम लें। पहले शोरा और नौसादर को पीस लें, फिर दोनों को लोहे के तवे पर डालकर नीचे अग्नि जलाऐं और थोड़ा थोड़ा आक का दूध डालते रहैं। जब सारा दूध खुश्क हो जाए और दवा विल्कुल राख हो जाए चिकनाहट विल्कुल न रहे, तब पीसकर रखें। आधा आधा ग्रेन (2 चावल के बरावर ) मात्रा में प्रातः व सांय को बतासे में रखकर खिलाऐं या ग्लूकोज मिलाकर पिलाऐं।यह योग ऐसी टी.बी. के लिऐ रामबाण है जिसमें खून कभी न आया हो। इसके सेवन से हरारत, ज्वर, खांसी, शरीर का दुबलापन, आदि टी.बी. के लक्षणों का नाश हो जाता है।
3) काली मिर्च, गिलोय सत्व, छोटी इलायची के दाने, असली बंशलोचन, शुद्ध भिलावा, सभी का कपड़छन किया चूर्ण लें। प्रातः ,दोपहर व सांय तीनो समय एक रत्ती की दवा मक्खन या मलाई में रखकर रोगी को खिलाने से तपेदिक विल्कुल ठीक हो जाता है। इस औषधि को तपेदिक का काल ही जानो।
प्रयोग शाला में किए गए अध्ययनों में यह बात सामने आई कि विटामिन सी शरीर में कुछ ऐसे तत्वों के उत्पादन को सक्रिय करता है जो टीबी को खत्म करती हैं । ये तत्व फ्री रैडिकल्स के नाम से जाने जाते हैं और यह t b के उस स्वरूप में भी कारगर होता है जब पारंपरिक antibiotics दवाएं भी नाकाम हो जाती हैं.विटामिन सी की 500 एम जी की एक गोली दिन में तीन बार लेना चाहिये|
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