Thursday, 1 February 2018

दरभंगा: ऐसा लंगर कहीं और नहीं….#jkartik ...jha kartik

          

           दरभंगा: ऐसा लंगर कहीं और नहीं….


Hello doston Mera naam hai kartik jha or aaj mein aap ko apne hi gaon ki ek sachchi ghatna ke baare me btane waala hun..

                                   (शंभू बाबा)

क्या वो कोई राजा है, क्या वो कोई अरबपति है, क्या वो कोई धन्ना सेठ है, क्या वो कोई राजनेता है, क्या वो कोई ब्यूरोक्रेट्स है…जो करीब तीन महीने से महाभोज का आयोजन करवा रहा है। अब जवाब भी सुन लीजिए ना तो वो राजा है, ना वो अरबपति है, वो धन्ना सेठ भी नहीं है, राजनीति से उनका कोई लेना-देना नहीं है, ब्यूरोक्रेट्स भी नहीं है लेकिन उनकी निगरानी में तीन महीनों से महालंगर चल रहा है। दरभंगा से करीब 40 किमी दूर स्थित कसरौर नामका एक गांव है। आसपास के इलाकों में कसरौर की पहचान मां ज्वालामुखी के मंदिर को लेकर है। हम आपको मां ज्वालामुखी मंदिर के दरबार की महिमा के बारे में भी बताएंगे लेकिन सबसे पहले बात इस महाभोज की। कसरौर गांव के रहने वाले शंभू बाबा मां ज्वालामुखी के साधक हैं। इसी साल 10 फरवरी को शंभू बाबा की मां का देहांत हो गया था। श्राद्ध कर्म के बाद 18 फरवरी से जो भोज का सिलसिला शुरू हुआ है वो अब तक थमा नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक अब तक करीब चार लाख से अधिक लोग भोजन कर चुके हैं।
कौन हैं शंभू बाबा ?
बड़े-बुजुर्गों की माने तो उन्होंने अपने संपूर्ण जीवनकाल में ऐसे भोज का आयोजन आज तक नहीं देखा था। गांव के लोगों के मुताबिक रोजाना हजारों की संख्या में लोग भोजन करने के लिए पहुंचते थे। आसपास के गांवों में निमंत्रण भेज दिया जाता था और जिनको निमंत्रण नहीं भी मिला होता तो वे लोग भी इस महालंगर का प्रसाद पाने के लिए नि:संकोच पहुंचते थे। सुबह-दोपहर-शाम या फिर मध्य रात्रि हो चूल्हा कभी बंद नहीं होता। 50 से 60 की संख्या में हलवाई और सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने इस महाभोज के आयोजन को सफल करने की मुहिम में दिन-रात एक कर दिया था। कसरौर में तो मानो मेला सा माहौल बन गया था। अब आप सोच रहे होंगे कि इस तरह के भोज के आयोजन में तो लाखों-करोड़ों का खर्च हो गया होगा। आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि इस भोज के लिए सामग्री कहां से और कौन पहुंचा रहा था यह अब तक गुप्त है। और हम आपको ये भी बता दें कि शंभू बाबा जो कि इस महाभोज के आयोजक हैं संन्यासी हैं। अति साधारण वेषभूषा में रहने वाले शंभू बाबा की ख्याति मां ज्वालामुखी के साधक के तौर पर है। प्रतिदिन ट्रकों में भरकर सामान आया करता था… लेकिन ये सामग्री कहां से आ रही है इसकी जानकारी किसी को नहीं है।
गांववालों की माने तो कई साल पहले शंभू बाबा किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हो गए थे। बीमारी का इलाज भी चला लेकिन डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। एक समय ऐसा भी आया था जब शंभू बाबा की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं था। ऐसे वक्त में शंभू बाबा को ने मां ज्वालामुखी की शरण ली और उनके ही मंदिर में निवास करने लगे। गांववाले तो ये भी कहते हैं कि इस दौरान बिल्वपत्र और मां ज्वालामुखी को अर्पित पुष्प ही उनका आहार हुआ करता था। अब आप इसे चमत्कार कहें या जो नाम दे लेकिन शंभू बाबा की सेहत में सुधार होता चला गया। इसके बाद तो शंभू बाबा ने अपना जीवन मां ज्वालामुखी के चरणों में ही समर्पित कर दिया। मां के दरबार में जो भी भक्त आता है वह शंभू बाबा से जरूर मिलता है। शंभू बाबा उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए मां से प्रार्थना करते हैं और प्रसाद के स्वरूप में मिट्टी का टुकड़ा देते हैं। आसपास के लोगों का दावा है कि शंभू बाबा में दैविक शक्तियों के असर को साफ महसूस किया जा सकता है और उनकी प्रार्थना से अनगिनत लोगों को लाभ पहुंचा है।
मां ज्वालामुखी मंदिर का इतिहास:
अब आप हम आपको बता रहे हैं कसरौर के मां ज्वालामुखी मंदिर की महिमा। गांव के बुजुर्गों की माने तो सैकड़ो साल पहले हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में लखतराज पांडेय नामके भक्त को मां ज्वालामुखी ने साक्षात दर्शन दिया था। लखतराज पांडेय कसरौर से सटे उफरौल गांव के रहने वाले थे। लखतराज पांडेय ने भगवती से अपने गांव चलने की प्रार्थना की और माता ने भी उनकी बात मान ली। कसरौर के आसपास उन दिनों भयानक जंगल हुआ करता था। थकान होने पर वे एक जगह रुके और कुछ देर विश्राम करने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने भगवती से गांव चलने का निवेदन किया लेकिन भगवती ने यहीं स्थापित होने की इच्छा जताई। लखतराज पांडेय ने उन्हें वहीं स्थापित किया। कसरौर के ज्वालामुखी मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। भक्त सिमरिया से गंगाजल लाकर मां के मंदिर में अर्पित करते हैं। ऐसी मान्यता है कि मां के दरबार में जो भी भक्त सच्चे मन से मुराद मांगता है मां ज्वालामुखी उसकी झोली भर देती हैं। एक और खास बात ये कि इस गांव में किसी के घर में भगवती की स्थापना नहीं की गई है। गांववालों के सारे शुभ काम चाहे शादी-विवाह हो या मुंडन-उपनयन…सब मां के प्रांगण में ही संपन्न होता है। इन्हीं मां ज्वालामुखी के अनन्य भक्त हैं शंभू बाबा। गांव के लोगों का तो यहां तक कहना है कि शंभू बाबा बिना अन्न ग्रहण किए ही मां की सेवा में निरंतर लगे रहते हैं।
कसरौर गांव के लोगों की शिकायत है कि मंदिर का ऐतिहासिक महत्व होने के बाद भी राज्य सरकार और पर्यटन विभाग की तरफ से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अगर पर्यटन विभाग पहल करे तो मां ज्वालामुखी के इस धाम को धार्मिक टूरिस्ट प्लेस के तौर पर विकसित किया जा सकता है।

मां ज्वालामुखी मंदिर, कसरौर तक पहुंचने का रूट
 : दरभंगा रेलवे स्टेशन से विरौल रूट जाने वाली बस से शिवनगर घाट उतरकर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा आप प्राइवेट टैक्सी बुक कराकर भी मां ज्वालामुखी के मंदिर तक दर्शन करने के लिए पहुंच सकते हैं।...


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Mera gamil hai..kartikbabu31@gmail.com..

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